सोमवार, 20 दिसंबर 2010

नक्सलियों ने फिरौती ले छोड़ा


सोनभद्र : जिले के पन्नूगंज थाना क्षेत्र के सिलथम-मऊ संपर्क मार्ग के निर्माण के दौरान दो दिन पूर्व पहुंचे नक्सलियों ने दो का अपहरण कर लिया और जेसीबी चालक समेत दो की पिटाई कर जख्मी कर दिया। अगवा किये गए लोगों को शनिवार को फिरौती लेने के बाद नक्सलियों ने छोड़ दिया। नक्सलियों की धमक से ग्रामीणों में दहशत फैल गई है। पुलिस का कहना है कि जेसीबी चालक व एक मजदूर के बीच मारपीट हुई थी। एक कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा पन्नूगंज थाना क्षेत्र के सिलथम गांव से मऊ कला तक संपर्क मार्ग का निर्माण कराया जा रहा है। सूत्रों की माने तो गुरुवार की शाम नक्सलियों का एक दल कार्यस्थल पर पहुंचा और जेसीबी चालक बलिया निवासी जितेंद्र गोड़ व गाजीपुर जनपद निवासी हरेंद्र यादव की पिटाई करने के बाद दो लोगों को उठा ले गये।

भोजन न बनाने पर ले ली पत्नी की जान


पवई (आजमगढ़) : गुस्सा इंसान को कभी-कभी हैवान बना देता है और उस दौरान वह क्या कर डालेगा, पता नहीं। इसी गुस्से में एक पति ने अपनी पत्‍‌नी को मौत के घाट उतार दिया। पत्‍‌नी का कसूर केवल इतना था कि उसने भोजन नहीं बनाया था। वैसे घटना के पीछे कई कारणों की चर्चा हो रही है। घटना पवई थाना क्षेत्र के ग्राम नाटी में शनिवार को अपराह्न तीन बजे के करीब हुई। यहां सरेला नामक 26 वर्षीया विवाहिता की हत्या कर दी गयी। घटना के बाद पूरा परिवार मौन साधे पड़ा था। किसी तरह से प्रधान राजबहादुर यादव को सरेला के मरने की जानकारी हुई, जिसके बाद उन्होंने पुलिस को इसकी जानकारी दी। पुलिस ने आरोपी पति को घर से ही गिरफ्तार कर लिया। मिली जानकारी के अनुसार आरोपी पति त्रिवेणी मौर्य तीन भाइयों में सबसे छोटा और घर पर खेतीबाड़ी के साथ भट्ठे पर मजदूरी करता है। उसके बड़े भाई जैसराज व मझले भाई त्रिलोकी मुम्बई में रहते हैं, जबकि दोनों भाइयों का परिवार गांव में अलग-अलग रहता है। घटना वाले दिन सास केवला देवी जब पुराने मकान से नये मकान में भैंस को चारा देने पहुंची तो देखा कि सरेला चारपाई पर अचेत पड़ी है। यह देख उसकी कुछ समझ में नहीं आया और वह वहीं पर बैठी रह गयी। थानाध्यक्ष आरजी आजाद ने बताया कि प्रथम दृष्टया मामला अनिच्छित हत्या का है, आगे की जांच में जो सामने आयेगा उसके अनुसार कार्रवाई की जायेगी।

तलाश : प्रत्याशी के पीछे कौन


वाराणसी : सच मानिए तो ब्लाक प्रमुख सहित सभी अप्रत्यक्ष प्रणाली से लड़े जाने वाले पदों के चुनाव लोकतंत्र का खुला उपहास बन गये है। कहीं पर भी प्रत्याशी की योग्यता को तव्वजो नहीं मिल रही। सिर्फ प्रत्याशी और उसके पीछे की ताकत को ही आंका जा रहा। आज के सभ्य समाज में भी धन और बाहुबल ही अपना लोहा मनवा रहे है। इन सम्मान के पदों पर अब कोई भी पैसों से मजबूत व्यक्ति आसीन हो सकता है। आठों ब्लाक में प्रमुख चुनाव का तमाशा चल रहा है। मूल प्रत्याशी में किसी की दिलचस्पी नहीं है। सभी लोग जानने की कोशिश में है कि इनके पीछे किसकी ऊर्जा (धन,बाहु बल व प्रतिष्ठा) खप रही है। मतलब साफ है कि जो प्रमुख बनेगा वास्तव में वह काम नहीं निबटाएगा। जिसकी ऊर्जा उसके पीछे खपी वही अप्रत्यक्ष रूप में अपना काम साधेगा। ऐसा एक नहीं सभी ब्लाकों में देखने को मिल रहा। ये अलग बात है कि कहीं साधने वालों ने आपसी समझौता कर बड़ी लकीर खींच दी है तो कहीं दावपेंच चल रहा है। महत्वपूर्ण यह है कि कई घराने अधिक से अधिक अपने लोगों को ब्लाक प्रमुख की कुर्सी पर बैठाने की जुगत में लगे है। इस चुनाव में बेचारे मतदाता (बीडीसी)की स्थिति काफी निरीह दिख रही। उनके विजयी प्रमाण पत्र किसी न किसी दबंग ने अपने पास दबा रखा है। कुछ मतदाताओं को बाहर घूमने जाने की भी बात कही जा रही है। चुनाव तक इनकी जिंदगी सांसत में पड़ी हुई है। इन दिनों गांव-गांव में चर्चा मतदाताओं की बोली लगने की हो रही। इसी पर चटकारे लेकर बातें की जा रही है। वैसे कोई भी मतदाता ये स्वीकार करने को तैयार नहीं हो रहा कि उसे कुछ मिला भी है। हां, मदद देने वालों के समर्थक अपने प्रत्याशी की विजय के प्रति आश्वस्त होने का कारण चुकता की गई राशि को ही बता रहे है। साथ में मतदाता के हस्तगत प्रमाणपत्र उनके पास सबूत के रूप में है। कहीं विधायक ने अपनी नाक फंसा रखी है तो कहीं सांसद, पूर्व सांसद या मंत्री की इज्जत दांव पर है। एकाध जगह ऐसा भी देखने को मिला कि परस्पर विरोधी खेमे भी जुगाड़ चुनाव में साथ-साथ हो गए है। प्रमुख चुनाव में ज्यादा बड़े इसलिए भी कूद गए है क्योंकि जिला पंचायत चुनाव बिना लड़े ही फरिया गया। वह भी नवोदित अध्यक्ष की लोकप्रियता थी या दमखम। वह तो अंदरखाने की बात है। इस पर ज्यादा चर्चा करना इस कारण भी बेमानी है कि जब चुनावी व्यवस्था ही ऐसी है तो अवसर पाने वाला अपने हिसाब से सेटिंग करेगा ही।

सारनाथ में धराया संदिग्ध

वाराणसी : सारनाथ क्षेत्र में घूम रहे एक संदिग्ध युवक को पुलिस ने रविवार को हिरासत में ले लिया। उससे पूछताछ चल रही है। वह बार-बार बयान बदल रहा है। फिलहाल उससे कोई खास जानकारी नहीं मिल पायी है। पूछताछ में युवक ने खुद का नाम शेर अली निवासी समस्तीपुर (बिहार) बताया। पहले उसका कहना था कि वह अपनी ससुराल दल श्रृंगारपुर (समस्तीपुर) जाने के लिए तीन दिन पहले ट्रेन से रवाना हुआ। ट्रेन में उसे नींद आ गई। जब नींद खुली तो ट्रेन औडि़हार स्टेशन पर पहुंच चुकी थी। वह ट्रेन से उतरा और गाजीपुर से आ रही बस में बैठकर आशापुर पहुंच गया। बाद में कहने लगा कि वह घर से दिल्ली के लिए चला। कैंट स्टेशन को दिल्ली समझकर उतर गया। बाहर निकला तो गाजीपुर की बस में यह सोचकर बैठ गया कि यह हाजीपुर (बिहार) जा रही है। बहरहाल युवक को संदिग्ध स्थिति में घूमते देखकर क्षेत्रीय लोगों ने पुलिस को इसकी जानकारी दी। पुलिस उसे लेकर थाने चली गई। उसके पास से एक मोबाइल और दो सिम मिले। दो सिम के बाबत पूछने पर उसने बताया कि वह दिल्ली की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी का ठेला खींचने का काम करता है। दूसरा सिम दिल्ली का है जिसे वहां जाने पर वह मोबाइल में लगा लेता है। पुलिस ने उसके बताए नंबर पर कॉल किया तो साले से बात हुई। पुलिस ने उसे सारी बात बतायी। इसके साथ ही वह यहां के लिए रवाना हो गया। हिरासत में लिया गया युवक कुछ मंदबुद्धि लग रहा है। पुलिस उसके साले के पहुंचने का इंतजार कर रही है।

अगवा छात्र घर लौटा

मिर्जामुराद : कार सवार बदमाशों द्वारा शनिवार को कथित रूप से अपहृत भोजूपुर (रूपापुर) निवासी रतन गौड़ उर्फ पुजारी (16 वर्ष) रविवार को नाटकीय ढंग से लौट आया। उसने पुलिस को धोखे में अपहरण होने की कहानी सुनाई है। इस घटना को लेकर कयासों का बाजार गर्म है। बताते हैं कि रतन के पिता राजबली प्रसाद गौड़ कई वर्षो से दमन (गुजरात) में रहकर फल का कारोबार कर रहे हैं। राजबली के तीन बेटों में दूसरे नंबर का रतन कक्षा 10 का छात्र है। उसकी सोमवार से अ‌र्द्धवार्षिक परीक्षा होनी है लेकिन पेट की बीमारी के चलते वह चार माह से स्कूल नहीं जा पा रहा है। परिजनों ने बताया कि शनिवार को रतन किसी काम से घर से निकला और घर नहीं लौटा। रात तकरीबन 11 बजे उसने अपने मोबाइल से घर पर मौजूद मां राधिका को फोन किया कि रूपापुर चौराहा से पैदल घर आते समय कार सवार बदमाशों ने उसका अपहरण कर लिया है। खास बात यह कि कथित अपहर्ताओं ने किसी तरह की फिरौती की मांग नहीं की। रविवार को सवेरे रतन के बड़े भाई बाबा गौड़ ने ग्राम प्रधान हरिवंश उर्फ बबलू सिंह के साथ थाने पहुंचकर अपहरण की बाबत जानकारी दी। पुलिस मामले की तफ्तीश कर ही रही थी कि पता चला कि अपहर्ताओं ने उसे गोपीगंज (भदोही) के पास लाकर छोड़ दिया है। एसओ त्रिवेणी सेन मौके पर पहुंचे और रतन को लेकर थाने आए। पूछताछ में रतन ने बताया कि कार सवार बदमाशों की संख्या चार थी। उनके पास असलहे भी थे। बदमाशों ने उसे एक कमरे में बंद कर दिया था। देर रात वहां एक और व्यक्ति 4 लाख रुपये लेकर आया और रतन को देखकर कहा कि यह उक्त बच्चा नहीं है। उसने बदमाशों को 2 लाख रुपये दिए और चला गया। इसके बाद ही बदमाशों ने उसकी आंख पर पट्टी बांधी और लाकर गोपीगंज में छोड़ दिया।
साभार:दैनिक जागरण

मंगलवार, 25 मई 2010

हकीकत या अंध विश्वास

May 26, 2010
ऊंज (भदोही) । इस अनहोनी की व्यथा पर नजर डाली जाय तो इसकी शुरुआत होती है वर्ष 2006 के अक्टूबर माह में। ऊंज की पुलिस ने एक मामले में ऊंज से सटे गांव मुंगरहा निवासी गुलाब बिन्द को पकड़ा। थाने लायी। आरोप लगा कि लाकअप में पिटाई के चलते उसकी मौत हो गयी और यही से शुरुआत हो गयी ऊंज पर अनहोनी की काली छाया का। विशेष बात यह है कि मौत की सारी घटनाएं उसी मार्ग पर हुई जो गुलाब के घर तक जाता है।

होनी-अनहोनी। सदियों से पहले और सदियों के बाद भी होती रही है। यह अंधविश्वास नहीं बल्कि हकीकत है। ऊंज इसका उदाहरण भी है। इस क्षेत्र में लगातार चार वर्षो से घट रही घटनाएं एक कड़ी की तरह जुड़ी हकीकत में मौत का सिलसिला जारी रखे हुए है।

इस हकीकत की दास्तां यह भी है कि इस क्षेत्र में पिछले लगातार चार वर्षो के दौरान चार बड़ी घटनाओं में चौदह जानें जा चुकी हैं। सभी घटनाएं वर्ष के आखिरी छह महीने में ही होती रही हैं। इसे लेकर ग्रामीणों की एक अच्छी तादात कई तरह की कयास लगाते हुए अनहोनी की आशंका से घिरकर भयभीत भी है। साथ ही यह भी उम्मीद संजोये रखी है कि शायद वर्ष 2010 में सब कुछ बस..अर्थात थम जाय।

हम बात कर रहे हैं काशी-प्रयाग के मध्य स्थित ऊंज थाना क्षेत्र की। इस क्षेत्र में हर वर्ष एक बड़ी घटना हो जाया करती है जिसमें मृतकों की संख्या काफी अधिक होती है। होनी-अनहोनी की इस कड़ी की खास बात यह है कि प्रत्येक वर्ष के आधा सफर पूरा होने के बाद ही बड़ी घटनाएं हुई हैं। अर्थात छठें माह के बाद ही यहां काल ने तांडव मचाया है। एक बार फिर वर्ष का छठा माह शुरू होने वाला है और ग्रामीण अनहोनी की आशंका से भयभीत होते जा रहे हैं। 2006 में घटी घटना के एक वर्ष के अंदर ही वर्ष अगस्त 2007 में ऊंज का बहुचर्चित कांवरिया कांड हुआ। इसमें दो कांवरियों की जानें हादसे में गयींतो एक फायरिंग के दौरान मारा गया। इन तीन मौतों से ऊंज की धरती और लाल हो उठी। अगले वर्ष माह नवंबर 2008 में एक बार फिर ऊंज की सड़कों पर लहू बिखरा। बधाव देकर घर लौट रहे टेला के एक ही परिवार के पांच सदस्यों की ऊंज में ही सड़क हादसे में मौत हो गयी। यह मौैतें ठीक उसी स्थान पर हुई जो मार्ग गुलाब के घर को जाता है और उसी स्थान के पास कांवरियों की मौत भी हुई थी। इसके बाद पिछले वर्ष 2009 के माह सितंबर में इसी क्षेत्र के चौरहटा गांव में संगम गुप्ता सहित एक ही परिवार के पांच सदस्यों को मौत की नींद सुला दिया गया। इस गांव को भी घटना स्थल के पास का वही रास्ता जोड़ता है जो तीन अन्य घटनाओं का भी साक्षी रहा है। वर्ष 2010 का छठा माह दस्तक देने वाला है। ऐसे में ग्रामीण होनी-अनहोनी की आशंका में एक बार फिर भयभीत हो गये हैं। क्या होगा आने वाले महीनों के दिनों में यह तो वक्त पर निर्भर करता है।


एक नजर..वर्ष दर वर्ष

2006-ऊंज थाने के लाकअप में पेशे से फार्मेसिस्ट गुलाब बिन्द की रहस्यमय मौत।

2007-बहुचर्चित ऊंज का कांवरिया कांड।

2008-कलिंजरा (ऊंज) वृहद हादसा।

2009-चौरहटा (ऊंज) नर संहार कांड।



आशंका व उम्मीद में कट रहा दिन

ऊंज थाना क्षेत्र में आशंका व उम्मीद के बीच लोगों का दिन कट रहा है। ग्रामीण होनी-अनहोनी से आशंकित हैं तो वहीं उन्हें उम्मीद की किरण भी दिखायी जा रही है। लगातार चार वर्षो से ऊंज का पीछा कर रही काल की काली छाया के बाबत पंडित दयाशंकर चतुर्वेदी का कहना है कि सभी क्षेत्रवासी मिलकर सुख शांति के लिए यज्ञ धर्म कर्म कार्यक्रम आयोजित करायें तभी क्षेत्र में शांति कायम हो सकेगी।



बरती जा रही सतर्कता:एसपी

ज्ञानपुर (भदोही) : ऊंज क्षेत्र में होने वाली घटनाओं के संबंध में पुलिस अधीक्षक ज्ञानेश्वर तिवारी का कहना है कि बार्डर के क्षेत्रों में क्राइम की घटनाएं अधिक होती हैं। ऊंज क्षेत्र एक्सीडेंट व क्राइम के मामलों में संदिग्ध है। इसको देखते हुए विशेष सतर्कता बरती जा रही है। वाहन चेकिंग के साथ ही पुलिस गश्त भी उस क्षेत्र में अधिक करने का निर्देश दिया गया है।

थाने के रिकार्ड में सक्रिय हिस्ट्रीशीटर हैं बसपा विधायक अंबिका सिंह

May 26,2010

गोरखपुर, 25 मई। कौड़राम के बसपा विधायक अंबिका सिंह गगहा थाने के रिकार्ड में अब भी सक्रिय हिस्ट्रीशीटर हैं। इनके खिलाफ सन 67 से लेकर 2004 तक हत्या, बलवा, हत्या प्रयास, मारपीट, लोक संपत्ति को क्षति पहुंचाने आदि मामलों में कुल सोलह मुकदमे दर्ज हुये हैं। इनमें से दस मुकदमों में विभिन्न न्यायालयों ने इन्हें दोष मुक्त कर दिया है। शेष छह मुकदमे अभी न्यायालयों में लंबित हैं।

बसपा विधायक अंबिका सिंह पुत्र बासदेव सिंह ग्राम हरैया थाना गगहा के निवासी हैं और वर्तमान समय में महानगर के कैंट थाना अंतर्गत रुस्तमपुर में भी मकान बनवाकर रहते हैं। अंबिका सिंह को गगहा पुलिस ने वर्ष 1991 में गैंगेस्टर में भी निरुद्ध किया था। दो मुकदमों में विधायक पर सेवेन क्रिमिनल ला एमेंडमेंट एक्ट भी लग चुका है जबकि इनके खिलाफ धोखाधड़ी का भी एक मुकदमा दर्ज है। गगहा के थानाध्यक्ष वीरेन्द्र यादव ने बताया कि बसपा विधायक अंबिका सिंह अभी भी थाने के सक्रिय हिस्ट्रीशीटर हैं।

प्रेमी के घर पहुंची प्रेमिका, मंदिर में रचाई शादी

May 26,2010
मिर्जामुराद (वाराणसी)। राजातालाब स्थित विश्वकर्मा मंदिर में मंगलवार की दोपहर सुरेरी (जौनपुर) निवासिनी प्रेमिका ने प्रेमी के साथ जबरिया शादी कर ली। शादी के लिए वह प्रेमी को घर से ले गई थी। शादी कर दोनों कचहरी में नोटरी कराने पहुंच गए। इस दौरान युवती के परिजन युवक को उठा ले गए। बताते है कि गांव स्थित प्रजापति बस्ती निवासी एक युवक गुजरात में रहकर पावरलूम चलाता रहा। इसी बीच पड़ोस में रहने वाली सुरेरी (जौनपुर) निवसिनी युवती संग उसका प्रेम-प्रपंच शुरू हो गया। युवक के परिजनों ने घटना की सूचना पुलिस को दी। मामला जौनपुर का होने के चलते पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की।

चिड़िया की जान जाए बच्चों का खिलौना

बिहार को अगर हम मुहावरों और कहावतों की भूमि कहें तो गलत नहीं होगा.भारत की हृदयस्थली बिहार में यह कहावत न जाने कितने सालों से प्रचलित है.हालांकि यह अलग सन्दर्भ में कही गई है लेकिन यह हमारे देश में लगातार बढती महंगाई से पीड़ित जनता की हालत पर एकदम सटीक बैठती है.अमीर वर्ग को तो महंगाई से कोई फर्क पड़ता नहीं क्योंकि अमीर तो और भी अमीर होते जा रहे हैं लेकिन महंगाई ने निश्चित रूप से मध्यम और गरीब वर्ग का जीना मुहाल कर रखा है.गरीब तो जैसे दाल और सब्जी का स्वाद ही भूलते जा रहे हैं.मध्यम वर्ग की हालत भी कोई कम पतली नहीं है.बच्चों की फ़ीस से लेकर ट्रांसपोर्टेशन तक हर चीज का खर्च बढ़ता जा रहा है और वेतन है कि जस-का-तस है.बच्चों पर व्यय में कटौती तो की नहीं जा सकती इसलिए समझौता बड़े लोगों को ही करना पड़ रहा है.जी.डी.पी. में अप्रत्याशित वृद्धि के प्रयास में लगीं पिछले २० सालों में देश पर शासन करनेवाली सभी सरकारें यह भूल गईं कि खाद्य-सुरक्षा को बनाये रखने के लिए कृषि-उत्पादन में वृद्धि को जनसंख्या-वृद्धि के अनुपात में बनाई रखनी जरूरी है.मैं सेवा-क्षेत्र का विरोधी नहीं हूँ लेकिन सेवा क्षेत्र रूपया दे सकता है डालर दे सकता है जी.डी.पी. में तेज बढ़ोतरी दे सकता है अनाज नहीं दे सकता उसके लिए तो खेती की ही जरूरत होगी.एक तरफ तो सरकार एक बात पर गर्व का अनुभव कर रही है कि वैश्विक मंदी के बुरे दौर में भी उसने विकास दर में कमी नहीं आने दी वहीँ दूसरी तरफ वित्त मंत्री अच्छी उपज के लिए इन्द्र भगवान का मुंह तक रहे हैं.जिस तरह आज नदियों और नहरों में पानी नहीं है और जिस तरह नलकूपों के द्वारा बेतहाशा दोहन के चलते भूमिगत जल में खतरनाक स्तर तक कमी आ गई है उससे साफ तौर पर कहा जा सकता है कि पिछले ६०-७० सालों में हमने जो सिंचाई नीति अपनाई थी और खेतों को सिंचित करने में जो बेशुमार धन खर्च किया सब बेकार था.अब भी कुछ बिगड़ा नहीं है सरकार को चाहिए कि मनरेगा के तहत दी जानेवाली राशि में से कुछ को वह नए तालाबों, आहरों और कुओं को खोदने और पुराने का पुनरुद्धार पर खर्च करे.इस साल भी अभी तक मानसून की हालत अच्छी नहीं है और तापमान रोज नए-नए रिकार्ड बनाने में लगा हुआ है.ऐसे में बहुत से इलाकों में तो पीने के पानी का संकट भी पैदा हो गया है.सरकार को यह समझ लेना चाहिए कि बजट और राजस्व घाटा को कम करने के लिए यह वक़्त मुफीद नहीं है.ऐसे प्रयासों से महंगाई और भी बढ़ेगी और जनता कम व्यय करने को बाध्य होगी जिससे पूरी अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ेगा.पिछले साल के मुकाबले इस साल गेहूं की सरकारी खरीद में २ प्रतिशत की कमी आई है यानी गेंहूँ खरीद में निजी हिस्सेदारी बढ़ गई है.ऐसे में जब देश की खाद्य सुरक्षा को खतरा बढ़ता जा रहा है सरकारी खरीद में कमी आना कोई अच्छा संकेत नहीं है.क्या सरकार देश में अकाल की कृत्रिम स्थिति को बढ़ावा देना चाहती है जैसा कि चालीस के दशक में बंगाल में देखने को मिला था?दुर्भाग्यवश हमारे नेता भी अमीर वर्ग में शामिल हैं भले ही पहले वे गरीब रहे हों इसलिए तो सरकार धड़ल्ले से पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ा रही और कृषि सब्सिडी में कमी ला रही है.लेकिन जनता जब तक शांत है तभी तक उसके पेट के साथ सरकार खिलवाड़ कर सकती है जैसे ही उसके सब्र का पैमाना छलकने लगेगा सरकार का कहीं अता-पता तक नहीं होगा.

हो चुकी है समाज के विघटन की शुरुआत

क्या आप बिल क्लिंटन की जाति जानते हैं? ब्लादिमीर पुतिन किस जाति के हैं, या जापानी प्रधानमन्त्री किस जाति का प्रतिनिधित्व करते हैं?, शायद नहीं, और संभवतःयही कारण है कि जिन देशों का यह नेता प्रतिनिधित्व करते हैं वे आज तरक्की कि दौड में हमसे कोसों आगे हैं. सफल लोकतंत्र में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण शर्त है आगे की ओर देखना. भारत को आज भी जब तेजी से विकसित हो रहे देशों की श्रेणी में शुमार किया जाता है तब मन में यह कसक टीस बन कर परेशान कर देती है कि आखिर कब तक हम इस दौड में महज़ एक नंबर बनकर दौड़ते रहेंगे? इसके पीछे शायद कारण यह भी है कि हम चार कदम आगे बढ़कर अपनी पुरातन रवायतों के भ्रम जाल में फिर दो कदम पीछे हट जाते हैं. इस वक़्त देश में जाति आधारित जनगणना पर बहस चल रही है. एक ओर तो हम अपनी अखण्डता के किस्से सुनाते-सुनाते नहीं अघाते, वहीँ दूसरी तरफ अतीत की बुराइयों को भी ‘बंदरिया के मृत बच्चे’ की तरह अपने सीने से चिपटाए रहते हैं. कुछ नेताओं के ऐसे प्रयास भारत के मज़बूत नागरिक समाज को दीमक की तरह खोखला कर रहे हैं. भारत की सांस्कृतिक एकता धुर देहात तक नज़र आती है, मगर यह कोई नहीं सोच-समझ रहा कि अपने राजनीतिक निहितार्थों के लिए कुछ क्षेत्रीय ताकतें अपना वज़ूद बचाने के लिए जाति-जनगणना का दाँव खेल रहे हैं.अंग्रेज़ों की फूट डालो, राज करो की नीति के मुरीद ये नेता अपने राजनीतिक स्वार्थों की खातिर समाज को बांटने का षड़यंत्र रच चुके हैं.
भारत आज विश्व का एकमात्र ऐसा देश बन चुका है जहां सबसे ज़्यादा आरक्षण है. यह समाज के विघटन की शुरुआत है. जाति कोई आपत्तिजनक बात नहीं है, मगर इसका राजनीतिक दोहन किया जाना भी कोई सम्मानजनक या राष्ट्रीय गर्व का विषय नहीं हो सकता. आज जाति आधारित जनगणना की बात चल रही है, कल विवाहों पर नियंत्रण की बात उठेगी, इसके बाद प्रेम विवाहों का नंबर भी आ सकता है. आखिर असली ताक़त आम आदमी के हाथों में कहाँ है? इस तरह की जनगणना के बाद सरकार पर आरक्षित वर्गों के लिए ज़्यादा सुविधाओं, धन की मांगें तेज़ हो जायेंगी. सामान्य वर्गों के लिए वैसे भी सरकारी क्षेत्र में कोई काम नहीं बचा है. इस बात पर भी गौर करना होगा कि सरकार हर साल आरक्षित वर्गों के लिए अरबों रूपये की योजनाएं संचालित करती है, मगर उन्नयन तो दूर गरीब-पिछड़े वर्ग की जनसंख्या आनुपातिक स्तर पर काफी बढ़ रही है. सरकार का यह दावा उसे कितना पंगु और जनता को बेवकूफ समझने वाला है कि “आज़ादी के बाद से अनुसूचित जातियों-जनजातियों को छोडकर किसी भी जाति के सवाल को नीतिगत फैसलों के तहत शामिल नहीं किया गया था.” इस बात का कोई जवाब नहीं दिया जा रहा कि आखिर अचानक इसकी ज़रूरत कैसे आन पड़ी.? यह भी सत्य है कि जाति-जनगणना से विभाजनकारी ताक़तें ज्यादा मज़बूत होकर उभरेंगी, इस तरफ से सरकार ने आँखें मूँद रखी है. सोते व्यक्ति को जगाना आसान होता है, मगर सोने का नाटक करने वाले को कोई नहीं जगा सकता. जनता जाग तो रही है, मगर उस निरीह पशु की तरह जिसको दुह कर पुनः खूंटे से बाँध दिया जाता है, वोट छीन लिया गया है, अब तो हाथों में तोते भी नहीं बचे.

मंगलवार, 27 अप्रैल 2010